भगवान श्रीराम ने मां सीता का हरण करने वाले लंका के राजा रावण का वध आश्विन शुक्ल दशमी को किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भीषण युद्ध के बाद दशमी को रावण का वध हुआ और श्रीराम ने लंका विजय प्राप्त की, इसलिए इस दिन को विजयादशमी या दशहरा के रुप में मनाया जाता है.
दशहरा पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस काल की अवधि सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बारहवें मुहूर्त तक की होती। दशहरे का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है (साल का सबसे शुभ मुहूर्त- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा- आधा मुहूर्त)। यह अवधि किसी भी चीज की शुरूआत करने के लिए उत्तम मानी गई है।
दशहरे पर राम, लक्ष्णम, सीता, हनुमान, माता दुर्गा, अपराजिता देवी, शस्त्र, ग्रंथ, औजार और शमी वृक्ष का पूजन किया जाता है।
इस दिन पूजा आदि से निवृत्त होकर घर के सदस्य रावण दहन देखने जाते हैं।
इस दिन वाहन खरीदना या नए कपड़े खरीदने शुभ माना जाता है।
दशहरा पर बन रहा शुभ संयोग, जानें तिथि, महत्व और पूजा विधि
इस दिन रावण दहन के बाद बच्चों को दशहरी दी जाती है। दशहरी के रूप में उन्हें इनाम, रुपये या मिठाई दी जाती है।
इस दिन दशहरे के दिन आपसी शत्रुता भुलाकर लोग एक दूसरे के गले मिलते हैं।
इस दिन परिवार और रिश्तों के सभी बड़े बूढ़ों के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेते हैं।
इस दिन तिलक लगाकर ही रावण दहन देखने जाते हैं और जब घर आते हैं तो प्रवेश द्वारा पर ही पुरुषों को विजयी तिलक लगाया जाता है। घर लौटने वाले की आरती उतारकर उनका स्वागत किया जाता है।
इस दिन कई तरह के पकवान बनाकर गिलकी के भजिये तलकर खाने की परंपरा भी है। इस दिन खासतौर पर गिल्की के पकौड़े और गुलगुले (मीठे पकौड़े) बनाने का प्रचलन है। पकौड़े को भजिए भी कहते हैं।
रावण दहन के बाद लोग एक दूसरे से गले मिलकर स्वर्ण रूप में शमी के पत्ते एक दूसरे को बांटते है ।
दशहरे के दिन पीपल, शमी और बरगद के वृक्ष के नीचे और मंदिर में दीया लगाने की परंपरा भी है। इस दिन घर को भी दीए से रोशन करना चाहिए। इस दिन पटाखे भी छोड़े जाते हैं।