हरिद्वार की अपराजिता को कविता लिखने का बहुत शौक है उन्होंने कई कविताएं पहले भी लिखी है अपराजिता का कहना है कि मेरी यह कविता उन माताओं बहनों के लिए है जिनका कोई लक्ष्य है और वह उसे पूरा करना चाहती हैं उन्होंने कहा की महिलाओं को “”न “””कहना भी सीखना चाहिए “”न””का कोई विकल्प नहीं होता

*प्रस्तुत पंक्तियों में
रचनाकार ने… स्त्रियों / बालिकाओं को प्रेरित करने और प्रोत्साहित करने का प्रयत्न किया है।
रचनाकार का मानना है कि हमें अपने अस्तित्व / आधिकार के लिये लड़ने के साथ-साथ हमें हर उस विषय का खण्डन करना चाहिये जो हमारे लिये हित कर न हो ,विशेषकर बालिकाओं के विवाह में की जाने वाली जल्दबाजी के कारण उच्च शिक्षा में अवरोध को लेकर वो अपनी चिंता व्यक्त करती हुयी प्रतीत होती हैं।।

*संघर्ष प्रेमी की कलम से*
*सम्पूर्ण विश्व / नारी जाति/* *नवीन* *बालिकाओं हेतु गहन* *संदेश*

जो हमारे लिये अनुचित है
उसका खंडन करने हेतु अनन्त न कहने की भी यदि आवश्यकता हो तो हे स्त्री तू *न कर, अब न कहना* *भी सीख ले*।।

न कहना अब “सीख” ले

हे नारी!
इस तरह
न कर जिंदगी का
त्याग अपनी,

मत सह पीकर
बूँद अश्रु की
निज जीवन का
व्यंग्य उपहास
योग्य नहीं जो तेरे तो
तू न कर……
हाँ…………
अब न कहना भी
सीख ले…..
हाँ , अब न कहना भी सीख ले …..

घुट- घुट कर
हाँ…..
क्यों रहना ….?
एक बार बस अब चीख ले,
न कहना अब सीख ले।।
हाँ…..
न कहना अब सीख ले।।

नहीं फरिश्ता कोई ऐसा
जो तुझसे बड़ा बना है,बैठा
तू भी इंसा,
वो भी इंसा,
इंसा…. से भी तु लड़ना, अब सीख ले….
न कहना अब सीख ले ॥
हाँ…
न कहना अब सीख ले ॥

हाँ…..
अकेले चलना सीख ले…..
आया हो जो पतझर भी,तो
मध्य शुष्क फलक में,
तू चहकना सीख ले ……..
हाँ, अकेले चलना सीख ले
न कहना अब सीख ले…… हाँ, न कहना अब सीख ले

क्यों…..? बंदिश है,
आँचल तेरा ,
बना पंख …तू इसको,
हाँ……
उड़ना अब चल सीख ले…
जहाँ से लड़ना सीख ले…
न कहना अब सीख ले …..

कर श्रृंगार कर,
मत सह इतना,
द्रोह कर विद्रोह कर,
खण्डित कर दे …..
हर बंदिश,
कर पार तू दहलीज सब
अब सड़को पर चलना सीख ले…….
चौराहों से मिलना सीख ले
निज कदमों से लाँघ दुरियाँ
गगन में उड़ना सीख ले….
तारों को गिनना सीख ले…
हाँ,न कहना अब सीख ले..

रंजिश ए भीड़ में भी,
हो खड़ी हाँ,
तू अपनी बात रखना
सीख ले ……
निज स्वप्न का ध्वज लहरा,
जहाँ से रंजिश करना सीख ले…..
चाह है जो ” *लक्ष्य*”की, तो बेबाकी करना सीख ले,
न कर हाँ ,
अब न कहना भी सीख ले,

जिंदा है,
हाँ ,
जिंदगी में,
जिंदा रहना सीख ले,
हक नहीं है,
कण जो धूल का है,
यह भी कहना सीख ले…
हाँ……
न कहना अब सीख ले …
संसार भला है,
जकड़ा ये तो,
सोच ए मरीज है,
तू बन नयी एक ,
*सूर्य किरण*
और,
इलाज करना सीख ले…
अनुकूल नहीं जो तेरे तो,
तू ,
विद्रोह करना सीख ले …
हाँ, न कहना अब सीख ले

वक्त की बंदिश से लड़, तू
और
वक्त से ही,
हाथ मिलाना सीख ले,
संग घड़ी के चल तू
और
जुगनुओं को ,
सुनना सीख ले,
जीवन को लिखना,
सीख ले………
हाँ, न कर
न कहना अब सीख ले…

बस सीख ले ……….
हाँ सीख ले ………..
सीख ले….. हाँ सीख ले…
कि तुझसे भी ,
कोई कुछ *सीख* ले……

 

*संघर्ष प्रेमी अपराजिता*